सिन्धु घाटी सभ्यता
सिन्धु घाटी सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल की कांस्ययुगीन सभ्यता है। इसे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम नगरीय सभ्यता का गौरव प्राप्त है।
• कार्बन डेटिंग पद्धति के अनुसार, इसका कालक्रम 2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. माना जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू-कश्मीर, चिनाव नदी), दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र, प्रवरा नदी), पूरब में आलमगीरपुर (मेरठ, हिण्डन नदी) तथा पश्चिम में सुत्कागेडोर (बलूचिस्तान, दाश्क नदी) तक है।
नगर नियोजन
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य में एक स्नान कुण्ड है, जो 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है।
यहाँ घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ मुख्य सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलते थे। अपवाद-लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे।
• हड़प्पा सभ्यता में प्रयोग की जाने वाली ईटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई. का अनुपात 42: 1 था।
समाज
• सिन्धु सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था। समाज चार वर्गों विद्वान, योद्धा,व्यापारी और शिल्पकार में बँटा था। जुआ खेलना, शिकार, नृत्य-संगीत आदि मनोरंजन के मुख्य साधन थे। • समाज में शवों को जलाने एवं दफनाने की प्रथा प्रचलित थी। यहाँ पर्दा प्रथाए वेश्यावृत्ति प्रचलित थी।
धर्म
सिन्धु सभ्यता के लोग प्रकृति पूजक थे एवं मातृशक्ति में विश्वास करते थे।
मातृदेवी एवं पशुपति शिव की पूजा की प्रधानता थी। • लिंग-योनि पूजा प्रचलित थी। लोग अन्ध-विश्वास तथा जादू-टोना में विश्वास करते थे। एक श्रृंगी पशु पवित्र था।
अग्नि कुण्ड का साक्ष्य कालीबंगा से प्राप्त हुआ है। 'स्वास्तिक' चिह्न हड़प्पा सभ्यता की देन है।
अर्थव्यवस्था
• इस सभ्यता में कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी। गेहूँ, जौ, मटर, कपास प्रमुख फसल थी। कपास को सिण्डॉन कहा जाता था।
• माप-तौल के मानकीकरण को स्थापित किया था। फुट तथा क्यूबिक की जानकारी लोगों को थी। माप के लिए दशमलव प्रणाली का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु सभ्यता में वस्तु विनियम प्रणाली प्रचलित थी। तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में थी।
• मेसोपोटामिया के साक्ष्यों में हड़प्पा स्थलों के लिए 'मेलूहा' शब्द का प्रयोग किया गया है। आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार प्रचलन में था।
• आन्तरिक व्यापार के अन्तर्गत सोना कर्नाटक से, ताँबा खेतड़ी (राजस्थान) से, सीसा राजस्थान से गोमेद सौराष्ट्र (गुजरात) से मंगाया जाता था।
• इस सभ्यता से सेलखड़ी की आयाताकार मुहरे सर्वाधिक प्राप्त हुई हैं। जिन पर लेख लिखा गया है। इसकी लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के लिए मार्टियर हवीलर ने आर्य आक्रमण, मार्शल ने बाढ़, आरेल स्टाइन ने जलवायु परिवर्तन, एस. आर. साहनी ने जल प्लावन को जिम्मेदार माना है।
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